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सावित्रीबाई फुले और फातिमा शेख की जयंती पर जीप सदस्य ने 60 लोगों के बीच किया कंबल वितरण ।

जाति-धर्म में नहीं बटेंगे! शिक्षा, बराबरी के लिए संघर्ष करेंगे! जिप सदस्य

चलकुशा सावित्रीबाई फुले और फातिमा शेख की जयंती पर जीप सदस्य ने 60 लोगों के बीच किया कंबल वितरण ।

संवाददाता – मुन्ना यादव

जाति-धर्म में नहीं बटेंगे! शिक्षा, बराबरी के लिए संघर्ष करेंगे! जिप सदस्य

हजारीबाग: चलकुशा सावित्रीबाई और शेख फातिमा के पहले महिला शिक्षिका के जयंती पर चलकुशा जीप सदस्य सबिता सिंह ने 60 गरीब जरूरतमंद लोगों के बीच कंबल वितरण किया।जिप सदस्य ने कही की आज से लगभग पौने दो सौ साल पहले सावित्रीबाई और फातिमा शेख ने समाज के वर्चस्वशाली ताकतों को चुनौती दी थी और लड़कियों की शिक्षा के लिए और कुरीतियों के खिलाफ संघर्ष का बीड़ा उठाया था, जिससे आज लड़कियों को शिक्षा का अधिकार मिला है.
सावित्रीबाई का जन्म 3 जनवरी 1831 को महाराष्ट्र के पुणे के निकट नायगांव में एक शुद्र परिवार में हुआ था. उनका विवाह 9 वर्ष की उम्र में हो गया था. अपने पति ज्योतिराव फुले की प्रेरणा से सावित्रीबाई ने जब पढ़ना शुरू किया तब हिंदू समाज ने इसे धर्म के विरुद्ध बताया और दोनों पति पत्नी को घर-समाज से बहिष्कृत कर दिया. उस समय उनके साथ खड़े हुए और आश्रय दिया फातिमा शेख के भाई उस्मान शेख ने. उन्हें आगे बढ़ाने के लिए प्रेरणा दिया।
फातिमा देश की पहली मुस्लिम महिला शिक्षिका मानी जाती हैं. सावित्रीबाई और फातिमा शेख ने साथ साथ टीचर्स ट्रेनिंग की और 1848 में ज्योति राव फुले द्वारा खोले गए स्कूल में दोनों ने पढ़ाना शुरू किया. सावित्रीबाई, फातिमा शेख और सगुना बाई की मदद से ज्योतिराव फुले ने 1848 से 1852 के बीच 18 स्कूल खोले.


फातिमा शेख और सावित्रीबाई को किस कदर विरोध झेलना पड़ा था हम सब इसकी कहानियां जानते हैं लेकिन इन दोनों ने हिम्मत नहीं हारी और घर घर जाकर लड़कियों को बुलाकर पढ़ने के लिए प्रेरित किया. इन्होंने छुआछूत का विरोध करते हुए सभी जाति की लड़कियों को एक साथ पढ़ाने और लड़कियों को आधुनिक शिक्षा- विज्ञान और गणित पढ़ाने पर जोर दिया था. सावित्रीबाई सिर्फ एक शिक्षिका ही नहीं समाज सुधारिका और कवियित्री भी थीं. उन्होंने छुआछूत, बाल विवाह, सती प्रथा, विधवा विवाह निषेध जैसी कुरीतियों के खिलाफ आवाज उठाई. विधवा महिलाओं के लिए आश्रम खोला और कई सवर्ण विधवा, गर्भवती महिलाओं को आत्महत्या करने से बचाया. बिना दहेज और बिना पुरोहित अंतरजातीय विवाह करवाए. शुद्र, अतिशुद्र (पिछड़ी, अति पिछड़ी, अनुसूचित जाति) और महिलाओं की गुलामी के खिलाफ समाज में अभियान चलाया. अस्पताल खोला जहां प्लेग रोगियों की सेवा करते हुए 1897 में सावित्रीबाई का निधन हुआ.

उस दौर में जो शक्तियां सावित्रीबाई और फातिमा शेख के खिलाफ खड़ी थीं, उनके उत्तराधिकारी आज भी समाज में सक्रिय हैं और महिला अधिकारों को कुचलने में लगे हुए हैं. लेकिन हम महिलाएं जानती हैं कि ये वे पितृसत्तात्मक शक्तियां हैं जो महिलाओं पर अपना नियंत्रण रखने के लिए “धर्म और संस्कृति” का सहारा लेती हैं. इन तथाकथित धर्म रक्षकों को अपने समाज में होने वाली ऑनर या हॉरर किलिंग, दहेज हत्या, घरेलू हिंसा, देवदासी प्रथा, डायन के नाम पर हत्या जैसी अनेकानेक कुरीतियों से कोई फर्क नहीं पड़ता और उन्हें ये जायज ठहरा देते हैं लेकिन महिलाएं यदि शिक्षा, रोजगार, सार्वजनिक जीवन में बराबरी का अवसर, अपने जीवन के बारे में निर्णय लेने का अधिकार या नागरिक अधिकारों की मांग करें तो इनका धर्म खतरे में पड़ जाता है और महिलाओं पर हिंसा की जाती है. आज इन पितृसत्तात्मक शक्तियों की संरक्षक भाजपा की साम्प्रदायिक और फासीवादी सरकार केंद्र में है. इस सरकार के शासन काल में कानूनों में बदलाव कर लड़कियों के अपनी मर्जी से जीवन जीने के अधिकार को खत्म किया जा रहा है और मनुस्मृति को सही ठहराया जा रहा है जिसके अनुसार दलित और स्त्री को हमेशा अधीनता में रहना चाहिए. इसलिए आश्चर्य जनक नहीं है कि सरकार आशाराम, रामरहीम जैसे बलात्कारी बाबाओं और स्वामियों को संरक्षण देती है और भाजपा के नेता उनका आशीर्वाद लेते हैं.
यह सरकार सिर पर स्कार्फ बांधने वाली मुस्लिम लड़कियों का स्कूल कॉलेजों में प्रवेश रोक देती है और बिलकिस बानो के बलात्कारियों को संस्कारी ब्राह्मण बताकर जेल से रिहा कर देती है. सांसद साध्वी प्रज्ञा ठाकुर धारदार चाकू रखने और दुश्मनों का सिर काटने की बात करती है. ये लोग हिंदू और मुस्लिम महिलाओं के बीच एक दीवार खड़ी कर देना चाहते हैं हमें इनकी चाल को समझने और इसके खिलाफ एकजुट होकर आवाज बुलंद करने की जरूरत है.
इस देश में अगर झांसी की रानी और बेगम हजरत महल ने अंग्रेजों के खिलाफ संघर्ष में शहादत दी तो सावित्रीबाई और फातिमा शेख ने शिक्षा और समाज सुधार आंदोलन चलाया. साझी शहादत, साझी विरासत की इस परंपरा को हमें याद रखने की जरूरत है.
आइए, सावित्रीबाई के जन्मदिन 3 जनवरी से लेकर फातिमा शेख के जन्मदिन 9 जनवरी तक एक अभियान चलाकर इन दोनों पुरखिनों की विरासत को आगे बढ़ाएं, पितृसत्ता और मनुवाद की गुलामी से मुक्ति के लिए अपना संघर्ष तेज करें और शिक्षा व बराबरी के अपने अधिकार की दावेदारी जताएं. इसलिए,आइए हम सरकार से तत्काल मांग करें-

1.के.जी से पी.जी तक लड़कियों की शिक्षा मुफ्त करो.
2.देश की हर लड़की शिक्षा प्राप्त कर सके, इसके लिए हर पंचायत में हाईस्कूल और हर प्रखंड में कॉलेज बनाओ.
3.शिक्षा का नीजिकरण बंद हो.
4.सभी लड़कियों के लिए रोजगार का प्रबंध करो.
5.सावित्रीबाई फुले और फातिमा शेख का जीवन संघर्ष स्कूली पाठ्यक्रम में शामिल करो. अखिल भारतीय प्रगतिशील महिला एसोसिएशन एपवा महिलाओं में बच्चियों के साथ हर समय कम पर कदम मिलाकर चलने के लिए तैयार है। इस कार्यक्रम में सविता देवी गीत देवी टर्की देवी कौशल्या देवी समेत अन्य महिलाएं मौजूद थी।

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