बिहार के चर्चित केमिस्ट्री शिक्षक बीके सिंह के कलम से पढ़िए क्या है विपक्ष की भूमिका
पटना संवददाता: अनूप नारायण सिंह
बिहार : कोरोना एक राष्ट्रीय त्रासदी है। बिहार भी इसकी चपेट में है। इस त्रासदी की मार उन बिहारियों को भी झेलनी पड़ रही है, जो घर से बाहर फंसे हुए हैं। इसके लिए बिहार सरकार और राजनीतिक दलों ने भी अपने स्तर पर अभियान चला रखा है। हर पार्टी के नेता इसके लिए तत्पर दिख रहे हैं। उनके फेसबुक और ट्विटर एकांउट को इस बात का गवाह माना जा सकता है।
बिहार में प्रमुख विपक्षी दल और विधान सभा में सबसे बड़ी पार्टी राजद है। तेजस्वी यादव नेता प्रतिपक्ष हैं। इस पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष जगदानंद सिंह हैं। अन्य पार्टियों की तरह राजद और उसके कार्यकर्ता भी त्रासदी झेल रहे लोगों की मदद कर रहे हैं। जिनके घरों में चूल्हे बुझने की नौबत आ गयी है, उनके लिए निवाला की व्यवस्था कर रहे हैं।
मुख्य विपक्षी दल होने के कारण राजद की जिम्मेवारी सत्तारूढ़ दलों से ज्यादा है। सत्तारूढ़ दल का चरित्र होता है कि सरकारी व्यवस्था को ही अपनी पार्टी की व्यवस्था बताकर श्रेय लेने की कोशिश करता है। यह स्वाभाविक भी है। वैसे माहौल में राजद समाज में रचनात्मक कार्यों के माध्यम से अपनी भूमिका का निर्वाह कर सकता है।
वर्तमान राजनीतिक समीकरण में सबसे ज्यादा वोटर भाजपा-जदयू गठबंधन के पास हो सकता है, लेकिन सबसे ज्यादा कार्यशील वर्कर राजद के पास ही हैं। वोटरों के जातीय चरित्र और सामाजिक संरचना को देंखे तो स्पष्ट होता है कि कार्यशील कार्यकर्ता राजद और भाजपा के पास ही हैं। जदयू की जातीय संरचना के अनुसार, जो वोटर उसके पास हैं, वे वर्कर नहीं हैं। राजद के खिलाफ नीतीश ने गैरयादव पिछड़ी जातियों की गोलबंदी का प्रयास किया था। उसी को अपना आधार वोट भी मानते हैं। लेकिन अकेले नीतीश कभी ताकत नहीं बन सके। भाजपा की बैसाखी के सहारे लंबे समय तक राजनीति की, लेकिन भाजपा को छोड़ने के बाद 2014 के लोकसभा चुनाव में 2 सीटों पर निपट गये। वजह साफ है कि नीतीश के साथ जुड़े लोग वोटर हैं, लेकिन कार्यशील वर्कर नहीं हैं। इसके विपरीत राजद के पास वर्तमान राजनीतिक समीकरण में वोटर की संख्या भले कम दिखती हो, लेकिन उसके पास कार्यशील वर्करों की विशाल फौज है। इसका वह रचनात्मक कार्यों में इस्तेमाल कर सकता है।
हम बिहार के बाहर की बात छोड़ दें। बिहार के हर गांव में राजद के कार्यकर्ता हैं। पंचायत स्तर तक संगठन है। पार्टी नेतृत्व उनके सहयोग से बिहार के बाहर से आ रहे लोगों की गिनती करवा सकता है। कोरेंटाइन में रह रहे लोगों की गिनती करवा सकता है। उनके लिए खाने-पीने की व्यवस्था कर सकता है।
बिहार में पूरा समाजवादी आंदोलन अधिकतर यादव और कुछ सवर्ण जाति के कार्यकर्ता-नेताओं के सहारे ही चल रहा था। कुशवाहा जैसी कुछ जातियां भी साथ में थीं। कर्पूरी ठाकुर किसी अतिपिछड़ी जातियों की वजह से नहीं, बल्कि यादवों के समर्थन से आजीवन पिछड़ों के नेता बने रहे। इसमें अगड़ी जातियों का भी सपोर्ट था। उन्हीं समाजवादी आंदोलन के लोगों का सपोर्ट राजद के साथ है। राजद अपने आधार विस्तार की भी लगातार कोशिश कर रहा है और पुराने जातीय आधार को सहेजने का प्रयास कर रहा है।
राजद अपने कार्यकर्ताओं के माध्यम से स्थानीय स्तर पर जरूरतमंद लोगों की मदद करवा सकता है। पार्टी के कार्यकर्ता यह काम कर भी रहे हैं। गांवों या शहरों में बसने वाली बड़ी आबादी कई तरह की परेशानियों से जूझ रही है। सभी समस्याओं का समाधान पार्टी वर्कर नहीं कर सकते हैं। लेकिन जितना संभव हो, उतना कर सकते हैं। डॉ लोहिया भी हरसंभव समानता की बात करते थे।
नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव सोशल मीडिया पर काफी एक्टिव हैं और लगातार प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री से मदद की गुहार लगा रहे हैं। इस सोशल मीडिया के माध्यम से वे अपने कार्यकर्ताओं को प्रोत्साहित करें तो इसका परिणाम ज्यादा सार्थक आ सकता है। पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष जगदानंद सिंह भी यह काम कर सकते हैं। रचनात्मक कार्यों की जानकारी लेने के लिए किसी भी वर्कर से फोन पर बातचीत कर सकते हैं। उन्हें मार्गदर्शन दे सकते हैं। यह समय रचनात्मक कार्यों के लिए प्रोत्साहित करने का है। स्थानीय स्तर और जरूरत के अनुसार रचनात्मक कार्यों का चयन किया जा सकता है। इससे राजद को संजीवनी मिल सकती है और तेजस्वी यादव को कार्यकर्ताओं से सीधे संवाद का मौका भी।