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किसी जरूरतमंद की मदद के लिए धन की नहीं  अच्छे मन की जरूरत होती है ।

किसी जरूरतमंद की मदद के लिए धन की नहीं  अच्छे मन की जरूरत होती है ।

किसी जरूरतमंद की मदद के लिए धन की नहीं  अच्छे मन की जरूरत होती है ।

हजारीबाग: जीवन में हर इंसान को कभी- न- कभी किसी- न- किसी की मदद लेनी पड़ती है या फिर किसी दूसरे की मदद करनी पड़ती है. समाज में रहने वाले व्यक्ति के साथ ये दोनों ही स्थितियां अक्सर आती ही रहती है. जीवन में जब कभी भी किसी व्यक्ति की मदद की बात आती है तो उस समय आपके धन से ज्यादा आपके मन का रोल हो जाता है. यदि अपने मन से किसी व्यक्ति की मदद करने की ठान ली तो निश्चित तौर पर आप उसे किसी न किसी तरह से मदद पहुंचा देंगे लेकिन जिस पल आपका मन कमजोर हुआ आप उस भाव या फिर काहे उस ताकत से मदद नहीं पहुंचा पाएंगे जो अगले की जरूरत होगी.

जब भी सच्चे और अच्छे मन से पवित्र सोच के साथ आप किसी को मदद में जुटेंगे तो ईश्वर और प्रकृति या यूं कहें की पूरी कायनात आपके सहयोग एवं साथ में जुट जायेगी ।

आज मेरे साथ ऐसा ही कुछ हुआ। सावन सोमवारी के पूजन- अर्चन के पश्चात जैसे ही मंदिर से निकला एक मोबाइल की घंटी बजी. कॉल एचएमसीएच के पोस्टमॉर्टम हाउस में कार्यरत राहुल कुमार का था. उन्होंने एक अत्यंत लाचार और बेबस परिवार के साथ एक शव को उसके घर भेजवाने का आग्रह हमसे किया. तत्काल मैं पोस्टमार्टम हाउस पहुंचा तो यहां चार मासूम बच्चे, एक बेवा और एक बूढ़ी मां को रोते- बिलखते देख मन द्रवीभूत हो उठा. इनके परिवार का एकलौता कमाऊ चिराग़ की एक दुर्घटना में (कुंवे में डूबने से) आकस्मिक निधन हो गया. इनका परिवार से संपर्क कट गया और आर्थिक आभाव में शव को परिवार तक नहीं पहुंचा पाने की दर्द इन्होंने सामूहिक रूप से बयां किया.

इनके परिवार के एकलौते कमाऊ चिराग़ बबलू लादोर (उम्र करीब 30 साल) का बरकट्ठा में कहीं पर कुंआ में डूबने से आकस्मिक मौत हो गई. ये यहां लकड़ी से संबंधित कार्य करते थे और परिवार साथ रखकर जीवन- यापन करते थे. ये मूलतः ग्राम- सुलेटिन, ग्राम- बीघा, थाना- दाउदनगर, जिला – ओरंगाबाद, राज्य- बिहार के रहने वाले हैं.

मैंने बड़े विनम्रतापूर्वक एचएमसीएच के उपाधीक्षक डॉ. ए.के.सिंह से इनके दर्द से रूबरू कराते हुए उनसे इनके भेजने में सहयोग करने का आग्रह किया. उन्होंने मेरे भावना का कद्र करते हुए तत्काल मदद किया और मुक्तिधाम सेवा संस्थान के सचिव नीरज कुमार के सहयोग से उनके एम्बुलेंस के जरिए घंटों से आर्थिक आभाव में अस्पताल में पड़े शव और मृतक के परिजनों को उनके घर भेजवाया गया.

ऐसे जरूरतमंदों की मदद में सहभागी बनकर मुझे सच्ची और आत्मिय खुशी की अनुभूति हुई. उम्मीद और विश्वास है की ऐसे ही आप सभी का सहयोग मिलता रहें, ताकि जन जरूरतों की सेवा हम धन से नहीं मन से कर सकें ।

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