Breaking Newsताजा खबरदिल्लीदुनियादेशबिजनेसराजनीतिशिक्षा

ओडिशा की महिला ने इतिहास रच दी,सच ही कहा गया है , इंसान जन्म से नहीं अपने कर्मों से महान बनता है।

ओडिशा की महिला ने इतिहास रच दी,सच ही कहा गया है , इंसान जन्म से नहीं अपने कर्मों से महान बनता है।

कोलकात्ता से राजीव कुमार की रिपोर्ट 

ओडिशा : इंसान जन्म से नहीं अपने कर्मों से महान बनता है। यदि कोई सच्ची लगन, कड़ी मेहनत एवं निष्ठा से कर्म करता है तो वह नसीब में लिखी लकीरों को बदल देता है। ऐसी ही एक कहानी ओडिशा के कटक जिले के कलराबंक ग्राम की बेटी इति सामन्त की है। अत्याधिक गरीबी के कारण बचपन में इति दो वक्त कि रोटी के लिए मोहताज थी। इति की मां दूसरों के घरों में काम कर परिवार का पालन-पोषन किया करती थी। वहीं, वह अपनी पढ़ाई के लिए गांव में लकड़िया और पत्ते इक्ट्ठा करने का काम करती थी। आज इति सामन्त महिलाओं के बीच प्रदेश में प्रेरणा का स्त्रोत बन चुकी हूं। इति सामन्त कहती हैं कि “गरीबी कोई बीमारी नहीं है, यह इंसान को जीवन में चुनौतियों का सामना और संघर्ष करना सिखलाती है”।

जानिए कौन और कहा कि है  इति …..

इति ने जीवन में दद्रिता के साथ संघर्ष किया और चुनौतियों का सामना कर कड़ी मेहनत से अपनी एक पहचान बनाई हैं। आज वह एक सफल एवं लोकप्रिय साहित्यकार, चर्चित मैगजिन की संपादिका, फिल्म निर्माता एवं महिलाओं के बीच प्रेरणा बन चुकी है। बचपन में दूसरों के घरों में मांग कर खाने वाली इति अब सैंकड़ों महिलाओं को रोजगार प्रदान करती हैं। साथ ही साथ बच्चों को उच्च शिक्षा देने के लिए फ्री में स्कूल चलाती हैं।

कहा की है इति और क्या करती थी 


इति सामन्त प्रदेश के कटक जिले के कलराबंक ग्राम की बेटी है। उनके पिता का नाम स्वर्गीय अनादीचरण सामन्त और माता का नाम स्वर्गीय निलिमारानी सामन्त था। इति सात भाई-बहन हैं जिसमें वह सबसे छोटी हैं। दुर्भाग्य से इति के जन्म के ठीक दो महीनों के बाद उनके पिता का निधन हो गया है। जिसके बाद उनकी मां ने गरीबी की मार झेल सभी भाई-बहनों को संघर्ष के सथा पालपोश कर बड़ा किया।

जानिए इति की कहानी

 

इति सामन्त कहती हैं कि “गरीबी कोई बीमारी नहीं है, यह इंसान को जीवन में चुनौतियों का सामना और संघर्ष करना सिखलाती है”। हमारा परिवार गांव में अत्याधिक गरीबी के बीच संघर्ष कर गुजर-बसर कर रहा था। परिवार के सदस्यों को एक दिन में दो वक्त की रोटी के नसीब होना मुकश्लि होता था। मेरी मां गांव के दूसरों घरों काम करती थी, जिससे हमारा घर चलता था। हमारे लिए अगले दिन खाने के बारे में सोचना भी एक सपना जैसा था। आमतौर पर काम करने के बाद दूसरों के घरों से चूड़ा मिलता था जिसे खाकर हम गुजारा करते थे।

इति ने क्या कहा आप भी जानिए

इति बताती हैं कि जब मैं दो महीने की थी तब मेरे पिता का निधन हो गया था। जिसके बाद परिवार में आर्थिक साहयता सभी प्रकार से बंद हो गया। गरीबी का बोझ बढ़ने लगा। कहीं से कोई आय की साधन नहीं था। मां को दूसरों के घरों में काम करने बाद भी घर चलाना मुश्लिक होता था। बारिश के दिनों हमें सबसे ज्यादा परेशानी होती थी। इस दौरान तेज बारिश होने पर घर की छत से पानी गिरने से हमारा बिस्तर के साथ पूरा कपड़ा गिला हो जाता था।

इति ने बताई अपने जीवन की कहानी

इति कहती हैं कि हम गरीबी थे लेकिन पढ़ने की लालसा थी। हमारी मां और बढ़े भाई कहते थे कि पढ़ाई कर हम एक बड़ा इंसान बन सकते हैं। जिसके बाद हम जरुरत की सारी चीजों को पूरा कर सकते है। हम सभी भाई-बहन मन लगाकर पढ़ना चाहते थे। दुर्भाग्य से हमारे पास न तो पार्यप्त किताबे होती थी और न ही घर में रौशनी जलाने के लिए कोई संधान हुआ करता था। मां काम करने के बाद 10-15 पैसों का किरोशन तेल लाती थी। जिससे दूसरे दिन दिया जलाने के लिए शाम होते ही बूझा देती थी। घर में पढ़ने की सुविधा नहीं होने के कारण आधिकांश मैं स्कूल में ही पढ़ा करती थी।

कितना संघर्ष की अपने जीवन में इति

इति कहती हैं कि मैं गांव में लकड़िया और पेड़ों के पत्ते इकट्ठा करती थी। जिसे गांव वाले को देने पर मुझे चुड़ा देते थे। मैं चुड़ा को इक्टठा कर बांधा कर स्कूल लेकर जाती थी और लंच के समय खाया करती थी। मेरा मानना है कि इंसान को सभी काम एक बराबर देखना चाहिए। कोई भी काम छोटा या बड़ा नहीं होता है। आज मेरे पास जो भी है मेरी मां का आशिर्वाद है और मेरे कठीन परिश्रम का फल है।

इति बताती हैं कि मनुष्य के जीवन में शिक्षा एक अनमोल धन है। शिक्षा के बिना कोई भी मनुष्य एक समाजिक व्यक्ति नहीं बन सकता है। मैंने बचपन में गरीबी के साथ संघर्ष किया और चुनौतियों का समाना करते हुए शिक्षा ग्रहण की हूं। आज मैं अपने गांव में दो स्कूल चला रही हूं, जहां हजारों बच्चों को शिक्षा ग्रहण करते हैं। मैं गरीबी के बीच बड़ी हुई हूं। गरीबी के कारण घर चलाने के लिए महिलाओं को संघर्ष करना पड़ता है। मैं महिलाओं को सशक्त बनाने का प्रयास कर रही हूं। साथ ही भगवान के आशिर्वाद से सैकड़ों महिलाओं को रोजगार का अवसर प्रदान कर पा रही हूं।

इति सामन्त ने अपनी प्रांरभिक पढ़ाई जिले के गांव की स्कूल से पूरा किया। इति ने स्तानक की पढ़ाई के लिए भुवनेश्वर के रमादेवी वूमेंन्स कॉलेज में दाखिला लिया था। परिवारिक स्थिति ठीक होने के बाद सामन्त ने किताबें लिखाना शुरु किया। आज इतिरानी सामन्त अपनी कठीन परिश्रम और दृढ़ संकल्प से महिलाओं के बीच प्रेरणा का स्त्रोत बन चुकी है।

Related Articles

Back to top button