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लॉकडाउन काल में बच्चों में आए व्यापक और सामाजिक बदलाव को सटीक कर उनमें साकारात्मक गुणों के संचार करने का सही वक्त है गर्मी छुट्टी 

लॉकडाउन काल में बच्चों में आए व्यापक और सामाजिक बदलाव को सटीक कर उनमें साकारात्मक गुणों के संचार करने का सही वक्त है गर्मी छुट्टी 

लॉकडाउन काल में बच्चों में आए व्यापक और सामाजिक बदलाव को सटीक कर उनमें साकारात्मक गुणों के संचार करने का सही वक्त है गर्मी छुट्टी 

हजारीबाग: एक पुरानी कहावत है- “हम यह धरती अपने बच्चों से उधार लेते हैं”। यानी वे संसाधन जिनका आज हम या तो इस्तेमाल करते हैं या दोहन कर रहे हैं वो हमारे आने वाली नस्ल की धरोहर है। अपने गांव या शहर की गलियारों में गुजरा वह बचपन याद कीजिए। पता नहीं चलता था कि अहले सुबह से उठकर खेलने गए तो कब दोपहर की तपती गर्मी में बड़े- बड़े दीवार फ़ांद लिया करते थे, शाम से देर रात तक सुनसान राहों पर अकेले खेलते रहते थे, तालाबों- नदियों में घंटों दुर तक तैर कर जाना, पेड़ों पर चढ़ना, लुक्का- छुप्पी खेलना, मिट्टी के घर और बर्तन बनाकर एक अलग दुनिया बसाना, अभिभावकों के बार- बार बुलाने के बाद भी उनके पास ना आना, पढ़ाई के बाद का पुरा वक्त अपने मन के अनुरूप प्रकृति के साथ स्वतंत्र रूप से बिताना, दादा- दादी या अभिभावकों से प्रेरक कहानी सुनना, और घर से बाहर गुजारना, मनोरंजन करना कितना अच्छा लगता था।

लेकिन वर्तमान परिवेश ने बचपन को घरों के चारदिवारी में बिल्कुल कैद सा कर दिया गया है। पढ़ाई, होमवर्क और बचा- खुचा वक्त कम्प्यूटर, मोबाइल और इंटरनेट की भेंट चढ़ रहा है। अब बच्चे गलियों में शोर करते नहीं दिखते, अब बच्चे को खोजने माता- पिता को कहीं दुर नहीं जाना पड़ता, बच्चों की जिंदगी से शारीरिक और सामाजिक क्रियाकलाप लगभग समाप्त होता दिख रहा है, बच्चे प्रकृति से दुर होते जा रहे हैं। विशेष करके कोरोना काल के दौरान लॉकडाउन के बीच करीब 75% से अधिक बच्चे ऑनलाइन क्लास के माध्यम से मोबाइल और इंटरनेट से जुड़ने की वजह से उनमें सकारात्मकता के साथ कई नकारात्मक प्रभाव भी पड़े। जिसका असर अब भी दिखता है। बच्चों के व्यवहार में व्यापक बदलाव आया। लॉकडाउन के वक्त बच्चों को शिक्षा से जुड़े रखने के लिए और उनके अंदर सकारात्मकता का संचार करने के उद्देश्य से यह पहल किया गया था लेकिन अत्यधिक मोबाइल के उपयोग और उपयोग में बेहद आजादी मिलने से बच्चे यूट्यूब और गूगल के जरिए कई नकारात्मक और उनके मानसिक स्थिति पर दुष्प्रभाव डालने वाले संदेश देखने और पढ़ने लगे। जिससे बच्चों में तनाव, निराशा, चिंता, गुस्सा, थकान, आलस, चिड़चिड़ापन और उग्रता जैसे अवगुण दिखने लगे। बच्चे अत्यधिक जिद्दी और आंख, पेट सहित अन्य प्रकार की कई बीमारियों से ग्रसित होने लगे। बच्चे कम उम्र में भी परिपक्व होने लगे ।

फिलवक्त अधिकतर बच्चों के स्कूलों में गर्मी छुट्टी हो गया है। स्कूल प्रबंधन द्वारा बच्चों को हॉमवर्क भी दे दिया गया है। गर्मी अपने रौद्र रूप में हैं ऐसे में बच्चे घरों के ऊब रहें हैं ।

ऐसे में सभी बच्चों के माता-पिता और अभिभावकों से आग्रह है कि अपने बच्चों को प्रकृति से जोड़े रखें। बच्चों में प्रकृति प्रेम के बीज बोने का यह अच्छा समय और तरिका है। बच्चों को गर्मी छुट्टी मनाने “नेचुरल स्थान” में ले जायें और प्राकृतिक संसाधनों के प्रति उनके अंदर सम्मान का भाव पैदा करें।

बच्चों के व्यवहार में परिवर्तन एवं उनके अंदर हो रहे भावनात्मक उथल-पुथल को सकारात्मकता के साथ बदलने का यह बिल्कुल सही वक्त हैं। अभिभावक कोशिश करें बच्चों को मोबाइल और इंटरनेट के इस्तेमाल पर कमी लाएं और अगर कोई इस्तेमाल करें भी तो उस पर गहरी निगरानी रखें। बच्चों की शारीरिक गतिविधियां बढ़ाएं, उन्हें पौष्टिक युक्त आहार एवं शुद्ध शीतल पेय का खान-पान कराएं, व्यायाम योग, पारंपरिक खेल नवाचार एवं रचनात्मक गतिविधियों के लिए प्रोत्साहित करें, प्रेरणादायक कहानियां सुनाएं, बच्चों को स्वच्छता और स्वास्थ्य जीवन के मूल आधार के मंत्र बताएं एवं धर्म, अध्यात्म से जोड़ने के साथ

हिंदुस्तानी संस्कृति और सभ्यता से रूबरू कराएं। ऐसा करके हम उनके व्यवहार में सकारात्मकता के साथ उन्हें सामाजिक गुणों से भी परिपूर्ण कर सकते हैं ।

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