प्राकृतिक संसाधनों का नियंत्रित उपयोग, ग्लोबल वार्मिंग रोकने में सहायक : डॉ राजेन्द्र ठाकुर
ग्लोबल वार्मिंग को लेकर आईसेक्ट विश्वविद्यालय में व्याख्यान का आयोजन
ग्लोबल वार्मिंग को लेकर आईसेक्ट विश्वविद्यालय में व्याख्यान का आयोजन
प्राकृतिक संसाधनों का नियंत्रित उपयोग, ग्लोबल वार्मिंग रोकने में सहायक : डॉ राजेन्द्र ठाकुर
ग्लोबल वार्मिंग से जीव-जंतुओं के सैंकड़ों प्रजातियां विलुप्त के कगार पर, बचाने के लिए जेनेटिक संरक्षण बेहतर विकल्प : डॉ मुनीष गोविंद
बढ़ती जनसंख्या और बढ़ता शहरीकरण भी ग्लोबल वार्मिंग का कारक, जागरूकता जरूरी : डॉ पीके नायक
हजारीबाग : पृथ्वी लगातार गर्म होती जा रही है। नतीजतन फसलों के उत्पादन पर इसका प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है। इतना ही नहीं ग्लोबल वार्मिंग के प्रभाव के कारण प्राकृतिक आपदाओं में वृद्धि से मानव जीवन लगातार प्रभावित हो रहा है। पर्यावरण असंतुलन की वजह भी ग्लोबल वार्मिंग ही बन रहा है। समय रहते इस पर गंभीरता से सकारात्मक पहल नहीं किया गया तो विनाशकारी परिणाम देखने को मिल सकते हैं। उक्त बातें मुख्य व्याख्याता के तौर पर शामिल कोल्हान विश्वविद्यालय के अंतर्गत संचालित टाटा कॉलेज, चाईबासा के भूगोल विभाग में बतौर सहायक प्राध्यापक पदस्थापित प्रो राजेंद्र ठाकुर ने तरबा-खरबा स्थित आईसेक्ट विश्वविद्यालय, हजारीबाग के मुख्य कैंपस में शुक्रवार को ग्लोबल वार्मिंग को लेकर आयोजित व्याख्यान के दौरान कही। उन्होंने कहा कि आज संपूर्ण विश्व ग्लोबल वार्मिंग और जलवायु परिवर्तन जैसी चुनौतियों का सामना कर रहा है, जिसे प्राकृतिक संसाधनों का नियंत्रित उपयोग कर इसकी बढ़ती हुई गति को रोका जा सकता है। उन्होंने कहा कि दुनिया पर नज़र डालें तो भारत आबादी के लिहाज़ से तेजी से बढ़ता हुआ देश है, जबकि पर्यावरण संरक्षण में यह काफी पीछे है, जो चिंताजनक है।
उन्होंने कहा कि पर्यावरण के प्रति हमारी अनदेखी बड़ी तबाही की वजह बन सकता है। ऐसे में ग्लोबल वार्मिंग कम करने के लिए एक ओर जहां वनों का संरक्षण जरूरी है, वहीं दूसरी ओर बिजली के उपकरणों का अनावश्यक उपयोग से बचने की जरूरत है। मौके पर मौजूद आईसेक्ट विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ पीके नायक ने ग्लोबल वार्मिंग का कारण जनसंख्या वृद्धि और बढ़ता शहरीकरण को बताते हुए कहा कि बढ़ती जनसंख्या से खाद्यान्न की मांग तेजी से बढ़ी है। परिणाम स्वरूप कीटनाशक और रासायनिक उर्वरकों का प्रयोग बढ़ गया है, जबकि जैविक कृषि समय की आवश्यकता है। वहीं विश्वविद्यालय के कुलसचिव डॉ मुनीष गोविंद ने भी ग्लोबल वार्मिंग को वैश्विक संकट बताते हुए जेनेटिक संरक्षण पर जोर दिया और कहा कि ग्लोबल वार्मिंग की वजह से भारत में जीव-जंतुओं की सैंकड़ों प्रजातियां विलुप्त के कगार पर हैं, जिसे बचाने के लिए जेनेटिक संरक्षण एक बेहतर विकल्प है। मौसम में आ रहे बदलाव और ग्लोबल वार्मिंग के बड़े सवाल के समाधान ढूंढने के लिए विश्वविद्यालय में आयोजित व्याख्यान को अहम बताते हुए डॉ गोविंद ने कहा कि इस पर आमजनों को भी जागरूक किए जाने की आवश्यकता है।
इस व्याख्यान के दरमियान आईसेक्ट विश्वविद्यालय के डीन एकेडमिक डॉ बिनोद कुमार, डीन एडमिन डॉ एसआर रथ, भूगोल विभाग के वरिष्ठ प्राध्यापक डॉ सीताराम शर्मा ने भी ग्लोबल वार्मिंग के महत्वपूर्ण तथ्यों और इसे रोकने के उपायों से मौजूद विद्यार्थियों को अवगत कराया। व्याख्यान को सफल बनाने में आईसेक्ट विश्वविद्यालय के भूगोल विभाग की सहायक प्राध्यापिका डॉ पूनम चंद्रा व पंकज प्रज्ञा के साथ साथ डॉ रोजीकांत, डॉ श्वेता सिंह, डॉ राजकुमार, मनीषा कुमारी, प्रीति व्यास, नागेश्वरी कुमारी, राजेश कुमार, अमित कुमार, प्रकाश सहित सामाजिक विज्ञान के सभी प्राध्यापक-प्राध्यापिकाओं व कर्मियों का अहम योगदान रहा।