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दो दशक बीत जाने के बाद भी,पुल का नसीब नही….

जान जोखिम में डाल नदी पार करते हैं ग्रामीण

पुल नहीं होने से ग्रामीण परेशान जान जोखिम में डाल नदी पार करते हैं ग्रामीण

खबर 24 न्यूज डेस्क 

दो दशक बीत जाने के बाद भी,पुल का नसीब नही,जान जोखिम में डाल नदी पार करते हैं ग्रामीण

हजारीबाग/ बरकट्ठा : प्रखंड मुख्यालय से लगभग सात किलोमीटर और एनएच 2 जीटी रोड घंघरी से लगभग 2 किलोमीटर दूरी पर स्थित एक आदिवासी गांव डुमरिया टांड आज भी विकास से महरूम है यहां के लोग मजदूरी कर अपने बच्चों को शिक्षा और पढ़ाई की ओर ले जाते हैं। लेकिन छोटे-छोटे बच्चों की पढ़ाई तीन माह तक बाधित होने का मामला उन्हें होता है। डुमरिया टांड के आदिवासी लोग आज भी बरसात में जान जोखिम में डालकर नदी मे लबालब पानी और उफनती धारा को चीरकर पार करते हैं।

इस वजह से पिछले तीन साल पूर्व एक व्यक्ति की जान और एक मोटरसाइकिल भी चली गई। नदी पर पुल बनाने की मांग ग्रामीण वर्षों से करते आ रहे हैं। लेकिन ना तो सरकार और ना ही स्थानीय जनप्रतिनिधियों का ध्यान इस ओर गया है। ऐसे में लाचार बेबस डुमरिया टांड के आदिवासी ग्रामीण जान हथेली पर रखकर पुल के अभाव में नदी पार कर प्रखंड मुख्यालय व हॉस्पिटल एवं बाजार आना-जाना करते हैं। बरसात में लोगों को पानी से भरे नदी में पार होने में मुश्किलों का सामना करना पड़ता है। किसी व्यक्ति का तबीयत खराब हो जाता है. तो नदी में पुल नहीं होने से इलाज के लिए ले जाने में काफी परेशानियां होती है।इसको लेकर कई बार यहां के नेताओं से गुहार लगाई गई। मगर कोई फायदा नहीं हुआ।

ये भी जाने ….

 

अपको बता दे की जिसका मैं बात कर रहा हूं यह एक आदिवासी पिछड़ा गांव है डुमरिया टांड जो एनएच 2 से सटा हुआ यह गांव है लेकिन इसके बावजूद यह गांव आज भी विकास से कोसों दूर है वजह यही है की यह गांव एक आदिवासी गांव है लेकिन क्या इस गांव को विकास कार्य के लिए अलग से फंड लाना पड़ेगा आखिर हां तो कौन लायेगा और नहीं तो यह आदिवासी बहुल क्षेत्र गांव का विकास कब तक होगा मैं अपको यह भी बता दे की अगर भरपूर वर्षा हो जाए तो सप्ताह दिन तक डुमरिया टांड़ के रहने वाले आदिवासी ग्रामीणों को घर ले पिंजरे में बंद रहना पड़ता है लेकिन सबसे बड़ी बात ये है की उस बीच अगर किसी की भी अचानक स्वास्थ्य बिगड़ती है तो इसका जिम्मवार कोन ? क्या आदिवासियों को जीने का अधिकार है इस जोहर झारखंड में या नही यह एक बड़ी सवाल है जिला प्रशासन एवं झारखंड सरकार से यहां की आदिवासी जनता जानना चाहती है ।

अब देखना यह लाजमी होगा की आखिर कब तक यह डूमरिया टांड़ के आदिवासीयो को पुल , संडक,घर ,नाली एवं अन्य सुबिधा मिलती है यह आने वाला वक्त बताएगा ।

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