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चलकुशा: विलुप्त होती संस्कृति एवं भाषाओं को संरक्षित करने का प्रयास है यह बिरहोर-हिंदी-अंग्रेजी शब्दकोष निर्माण:- केदार यादव

विलुप्त होती संस्कृति एवं भाषाओं को संरक्षित करने का प्रयास है यह बिरहोर-हिंदी-अंग्रेजी शब्दकोष निर्माण:- केदार यादव

 

 हजारीबाग /चलकुशा : भाषा संस्कृति की रीढ़ होती है। भाषा का विलुप्त होना संस्कृति का विलुप्त होना है। इतिहास के पन्नों में भी संस्कृति का अलंकार भाषा से ही होता है। ऐसे ही झारखंड के गर्भ में कई भाषाएं पलीं और विकसित हुई जो आज विलुप्त होने को हैं। अगर समय रहते इसका संरक्षण नही किया गया तो हम एक समृद्ध संस्कृति के कई प्राचीन भाषाओं को बैठेंगे।इतिहास इसके कई उदाहरण मौजूद है।जहाँ संस्कृति हार्श होने के साथ कई प्राचीन भाषाएं विलुप्त हो चुकी है।अब समय है विलुप्ति के कगार पर पहुँच चुके ऐसे भाषाओं को सुरक्षित एवं संरक्षित करना नही तो प्राचीन भाषाएँ केवल पाठ्यक्रमों तक ही मिट कर रह जायेगी।इस दिशा में चलकुशा प्रमुख प्रतिनिधि केदार यादव एवं जेएसएलपीएस,ग्रामीण विकास विभाग, झारखंड सरकार के अधीन पदस्थापित देव कुमार,प्रखंड कार्यक्रम प्रबंधक के द्वारा आदिम जनजाति बिरहोर समुदाय की भाषा के संरक्षण और आदिवासी संस्कृति को बढ़ावा देने का प्रयास किया जा रहा है।

इनके द्वारा जल, जंगल एवं जमीन से जुड़ी लगभग 1000 से अधिक बोलचाल की शब्दावलियों,जड़ी बूटियों से संबंधित उपचार, सांस्कृतिक गीतों का बिरहोर-हिंदी-अंग्रेजी शब्दकोष तैयार किया जा रहा है जो झारखंड ही नहीं बल्कि पूरे देश के लिए गर्व की बात है।ज्ञातव्य हो कि श्री देव कुमार राष्ट्र के प्रतिष्ठित संस्थान निफ्ट, राँची के छात्र रह चुके हैं।बताते चलें कि झारखंड का बिरहोर आदिवासी आदिम जनजाति,उनकी संस्कृति एवं भाषा विलुप्त होती सभ्यता एवं संस्कृति के श्रेणी में ही आता है।केंद्र एवं विभिन्न राज्यों के राज्य सरकारें अपने-अपने क्षेत्र के विलुप्त होती संस्कृति एवं भाषाओं को भरसक प्रयास कर रही है। झारखंड में कई आदिवासी आदिम जनजाति निवास करते है।

कहा जाता है कि संस्कृत सभी मूलभाषाओँ की जननी है।झारखंड में कई प्राचीन आदिम भाषाओं का लिखित साक्ष्य नही मिलता। बस ये बोलियों के रूप में ही जाने व बोली है।समय आ गया इन्हें कलमबद्ध किया जाये।ताकि आने वाली हमारी भावी पीढ़ी इससे रूबरू हो सके।वर्तमान में पश्चिमी प्रभाव में हम अपनी मौलिक महत्व को खोते जा रहे है। समय के साथ चलना तो वैश्विक दृष्टिकोण से सही हो सकता है लेकिन अपनी संस्कृति व भाषा को छोड़कर कदापि नही।इसी दिशा देव कुमार का यह प्रयास अत्यंत प्रशंसनीय एवं सराहनीय है जो बिरहोर भाषा के एक हजार शब्दों का शब्दकोष निर्माण का प्रयास कर रहें है।

 

यह सभी लोगों को इस दिशा में आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करेगा तथा पाठकीय सामग्री भी विलुप्त भाषाओं का संग्रह उपलब्ध हो पायेगा।इसमें मुख्य रूप से बिरहोर आजीविका सखी मंडल, नागो बिरहोर,शांति बिरहोर, सूर्यमुखी बिरहोर, बिरसी देवी, उषा देवी एवं राजेश कुमार के अलावा विभिन्न लोगों का विशेष सहयोग प्राप्त हो रहा हैl

चलकुशा से मुन्ना यादव की रिपोर्ट|

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