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इतिहास के पन्नों से : रेल चलने पर 17 नवंबर 1862 में पटना घाट तक ईस्ट सेंट्रल रेलवे ने रेलवे लाइन बिछायी

इतिहास के पन्नों से : रेल चलने पर 17 नवंबर 1862 में पटना घाट तक ईस्ट सेंट्रल रेलवे ने रेलवे लाइन बिछायी

इतिहास के पन्नों से : रेल चलने पर 17 नवंबर 1862 में पटना घाट तक ईस्ट सेंट्रल रेलवे ने रेलवे लाइन बिछायी

पटना: अनूप नारायण सिंह 

बिहार: 1781 ईस्वी में पटना घाट पर उतरे थे राजा राम माेहन राय । कभी पटना नदी से परिवहन का बहुत बड़ा केंद्र हुआ करता था. यहां गंगा नदी पर सौ से अधिक घाट थे, जहां से बड़ी- बड़ी नावें चलती थी. वहां से पटना से हावड़ा के बीच नदी के रास्ते से सामान ढोया जाता था. पटना से नावों द्वारा पूर्व में ढाका और पश्चिम में इलाहाबाद माल की ढुलाई की जाती थी. यह पटना शहर के पूर्वी छोर पर (मालसलामी) पटना घाट के किनारे है. यह घाट कभी एक व्यस्त बंदरगाह हुआ करता था. मारुफगंंज की मंडी, जिसे सम्राट अशोक ने बनवाया था. वहां से देश- विदेश से व्यापारी मसाला खरीदने आते थे. यह एक लंबे समय तक अंतर्राष्ट्रीय व्यापार का केंद्र रहा.

रेल चलने पर 17 नवंबर 1862 में पटना घाट तक ईस्ट सेंट्रल रेलवे ने रेलवे लाइन बिछायी और यही घाट रेलवे स्टेशन का निर्माण किया गया, जो पटना घाट के नाम से प्रसिद्ध है. इतिहासकारों की मानें तो मारुफगंज और मंसूरगज मंडी में माल पहुंचाने के लिए पटना घाट स्टेशन का निर्माण हुआ. स्टेशन से सटे ही मारुफगंज मंडी का गेट था, जहां से माल आसानी से मंडी तक पहुंच जाता था. पटना घाट पर 2000 तक माल की ढुलाई होती रही थी. इसके बाद कुछ सालों तक पटना घाट से दीघा घाट के बीच डीएमयू ट्रेन चलायी गयी,जो जो पटना घाट से दीघा के भी चलती थी, लेकिन पैसेंजर कम मिलने के कारण ट्रेन का परिचालन बंद कर दिया गया. यहां एक प्लेटफार्म और चार ट्रैक है. इस रेलवे स्टेशन का कोड पीटीजी है.

इस घाट का इतिहास अाधुनिक भारत के निर्माता कहे जाने वाले महान समाज सुधाकर राजा राम मोहन राय से भी जुड़ा है.

पटना 1781 ईस्वी में अरबी-फारसी पढ़ने के लिए राजा राममाेहन राय कोलकाता से नदी मार्ग से पटना आये तो पटना घाट पर ही उतरे थे. उस वक्त उनकी उम्र महज 9 साल थी और वे पटना में लगभग तीन साल रहे. पटना उस वक्त आरबी-फारसी शिक्षा का केंद्र था. सन् 1626 में गंगा किनारे झाऊगंज में मदरसा मस्जिद इस्लामिक अदब-अदीब का बिहार के तत्कालीन सूबेदार साइस्ता खां ने निर्माण कराया था. राजाराम मोहन राय यहां शिक्षा ग्रहण करने छह महीने के लिए ठहरे थे.

पटना घाट से सटे ही बर्नर कोठी से नाम से प्रसिद्ध यह भवन पटना में डेनिश फैक्ट्री (गोदाम को ही फैक्ट्री कहा जाता था) के अधीक्षक जॉर्गेन हेन्ड्रिच बर्नियर की थी. बर्नर की मृत्यु सन् 7 अगस्त 1790 (22 जुलाई 1735 से 7 अगस्त 1790) में हो गयी और उसके बाद उनको उसी आवासीय परिसर के पूर्व में दफनाया गया. इसके अलावा तीन अन्य कब्रों के साथ कुत्ता का भी कब्र हैं. स्थानीय लोगों ने बताया कि हाल के वर्षों तक अगर किसी को कुत्ता काट लेता था तो उनके परिजन कुत्ते के कब्र को लंघवाते थे. उनकी मान्यता थी कि ऐसा करने से वह ठीक हो जायेगा.

अभी जो बंगलानुमा है. जिसकी छत ढलवा है. यह एक छोटा सा कॉटेज है जिसके अगले बरामदा में झुकी हुई छत है. बंगले में छह कमरे है. पटना के शोरा की उच्च गुणवत्ता एवं इसके लाभप्रद कारोबार की संभावनाओं ने यूरोपीय व्यापारियों को आकर्षित किया और जिन्होंने फैक्ट्री की स्थापना की. जॉर्गेन हेन्ड्रिच बर्नियर ने पटना में 1774-75 ईस्वी में शोरा (साल्ट पीटर) फैक्ट्री की स्थापना की. शोरा का प्रयोग बारुद बनान में काम आता था. ब्रिटिश ने 1801 इस्वी में इस पर कब्जा कर लिया. बाद के वर्षों में यह रेलवे अधिकारियों के अधीन चला गया, जिन्होंने यहां कर्मचारियों के लिए रेलवे कालोनी बसायी. बर्नर कोठी को पटना घाट रेलवे स्टेशन मास्टर का आवास सह कार्यालय बनाया गया. स्टेशन मास्टर का बंगला आज भी अच्छी अवस्था में खड़ा है. और फिलहाल यहां रेलवे का मुख्य भंडार (सामग्री) अधीक्षक कार्यालय है.

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