विकास का दूत, हिन्दुत्व नहीं अछूत: सियासत की नई इबारत लिखने निकले केजरीवाल 3.0

राजनीतिक पंडित कहते हैं कि अगर लोकतंत्र में राष्ट्रवाद और धर्म (बहुसंख्यकों का) को जोड़ दिया जाए तो ये चुनाव में कामयाबी का बेजोड़ फॉर्मूला बन जाता है. केजरीवाल ने इस फॉर्मूले में विकास को भी जोड़ दिया है. दिल्ली विधानसभा चुनाव में इसका नतीजा भी देखने को मिल रहा है.
मंगलवार को दिल्ली स्थित आम आदमी पार्टी के दफ्तर की छत से केजरीवाल जब पार्टी कार्यकर्ताओं को संबोधित करने पहुंचे तो उन्होंने सबसे पहले जो नारा बुलंद किया वो था- भारत माता की जय. उन्होंने जीत के जश्न में उतावले पार्टी कार्यकर्ताओं से एक के बाद एक तीन नारे लगवाये.
ये नारे थे भारत माता की जय, इंकलाब जिंदाबाद और वंदे मातरम. लगभग 5 मिनट तक AAP कार्यकर्ताओं से रुबरू होने के बाद उन्होंने अपना भाषण खत्म करते हुए एक बार फिर से ये तीन नारे लगवाये और वंदे मातरम से अपना भाषण खत्म किया.
केजरीवाल के विजय भाषण में भारत माता की जय, वंदे मातरम जैसे नारों की भरमार यकायक नहीं है. इसके पीछे रणनीति और भविष्य की सियासत की सोच है. दरअसल इस पूरे चुनाव में बीजेपी ने जेएनयू और CAA के मुद्दे पर केजरीवाल को घेरने की कोशिश की. प्रकाश जावड़ेकर और परवेश वर्मा ने उन्हें आतंकी तक कहा. इन आरोपों पर केजरीवाल ने कभी आपा नहीं खोया. बल्कि इसका जवाब उन्होंने चुनाव के दौरान और चुनाव के बाद भारत माता की जय और वंदे मातरम जैसे नारों से दिया.
राष्ट्रवाद के हथियार से बीजेपी की काट
दरअसल इन नारों के जरिए केजरीवाल ने बीजेपी के हथियार की काट निकाल ली है. कभी सर्जिकल स्ट्राइक के लिए सबूत मांगने वाले केजरीवाल ने अपनी रणनीति बदली है और ये संदेश दिया है कि राष्ट्रवाद के नारे बीजेपी की बपौती नहीं हो सकते हैं. केजरीवाल अब इन नारों को मौलिक रूप से इस्तेमाल कर रहे हैं. इसकी बानगी केजरीवाल के चुनावी और विजय संबोधन में देखने को मिली.