क्या आदिवासी राष्ट्रपति बनने से आदिवासियों के खिलाफ बढ़ते अत्याचार के मामलो में आएगी कमी ?पढ़िए पूरी ख़बर
क्या आदिवासी राष्ट्रपति बनने से आदिवासियों के खिलाफ बढ़ते अत्याचार के मामलो में आएगी कमी ?पढ़िए पूरी ख़बर
दलितों और आदिवासियों के खिलाफ अत्याचार के मामलो में यूपी और मध्य प्रदेश सबसे ऊपर, दलित राष्ट्रपति होने के बावजूद देश में बढ़ते गए दलितों के खिलाफ अत्याचार के मामलेl
क्या आदिवासी राष्ट्रपति बनने से आदिवासियों के खिलाफ बढ़ते अत्याचार के मामलो में आएगी कमी ?पढ़िए पूरी ख़बर
दिल्ली : क्या आदिवासी राष्ट्रपति बनने से आदिवासियों के खिलाफ बढ़ते अत्याचार के मामलो में कमी आएगी ? या आदिवासी राष्ट्रपति का बनना सिर्फ राजनैतिक फायदे के लिए भुनाया जाएगा. ये सवाल आज इसीलिए पूछा जा रहा है क्योकि एनसीआरबी के आंकड़ों के मुताबिक़ राष्ट्रपति रहते रामनाथ कोविंद दलितों के जीवन में बदलाव लाने में कामयाब नहीं हो पाए. देश के सबसे बड़े संवैधानिक पद पर बैठे रामनाथ कोविंद खुद एक दलित है. जब उन्हें राष्ट्रपति बनाया गया था, तब भारतीय जनता पार्टी समेत एनडीए के अन्य घटक दलों के नेताओ ने दलितों के खिलाफ हो रहे अत्याचारों और उनके जीवन के बारे में बड़ी बड़ी बातें कही थी. मगर हुआ उसका ठीक उलटा. एक दलित राष्ट्रपति होने के बावजूद देश में दलितों के साथ हो रहे अत्याचार के मामले साल दर साल बढ़ते ही चले गए. 2018 से 2020 तक इन मामलो में 1,39,040 मामले दर्ज किये गए. इसमें भी सबसे अधिक मामले यूपी, बिहार से दर्ज किये गए. जिस क्षेत्र से रामनाथ कोविंद का सियासी सफर जुड़ा रहा. तीन सालों में यूपी में 36,467, बिहार 20,973, राजस्थान 18,418 और मध्य प्रदेश में 16,952 दलितों पर जुल्म हुए. इसके बाद के सालो के आंकड़े जारी नहीं किये गए l
आपको बता दे की मौजूदा राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू की. द्रौपदी मुर्मू को भी एनडीए नेताओ द्वारा आदिवासियों के लिए नायिका बताकर पेश किया जा रहा है. मगर द्रौपदी मुर्मू का अबतक का सफर देखे तो आदिवासियों के लिए द्रौपदी मुर्मू का ऐसा कोई काम अबतक नजर नहीं आता, जिसे उदहारण के रूप में प्रचारित किया जा सके. द्रौपदी मुर्मू संथाल परगना इलाके से आती है. द्रौपदी मुर्मू राष्ट्रपति बनने से पहले झारखंड की राज्यपाल भी रह चुकी है. लगभग छह साल का उनका लंबा कार्यकाल रहा. द्रौपदी मुर्मू खुद इस कार्यकाल को अपने जीवन का सबसे यादगार पल बताती है. मगर राज्य के सबसे बड़े संवैधानिक पद पर एक आदिवासी के रहते हुए क्या झारखंड में आदिवासी समाज की स्थिति में सुधार आया ? क्या झारखंड में आदिवासी समाज के खिलाफ अत्याचार बंद हुए ? आय दिन एससी एसटी थानों में धूल फांकती फाइलों को देखकर तो ऐसा नहीं लगता. बात चाहे गोड्डा में अडानी पावर द्वारा आदिवासी रैयतों की जमीन पर जबरन कब्जा करने, उन्हें उनकी ही जमीन में गाड़ देने जैसी धमकियों से लेकर खूंटी में पुलिस गोलीकांड में मारे गए आदिवासी बिरसा मुंडा की करे. हर ओर कमोवेश आदिवासियों की स्थिति इन छह सालो में बिक्लुल नहीं बदली. पूर्व की रघुवर सरकार के दौरान संथाल परगना के गोड्डा इलाके में आदिवासियों की जमीन जबरन अडानी पावर प्लांट के लिए ली जा रही थी. जमीन ना देने पर उन्हें उनकी ही पुश्तैनी जमीन पर गाड़ देने की धमकी मिल रही थी. लगातार आदिवासी रैय्यत अपनी जमीन और अस्तित्व बचाने के लिए प्रदर्शन कर रहे थे. लाठियां खा रहे थे. मगर जिस प्रदर्शन की गूँज पूरे देश में सुनाई दे रही थी. उसका शोर भी राजभवन की दीवारों तक नहीं पहुँच पा रहा था. ना ही आदिवासी राज्यपाल द्रौपदी मुर्मू तक उन आदिवासियों के आंसू पहुंच पाए. जबकि यह पूरा मामला आदिवासी समाज और खुद संथाल परगना का था. जहाँ से द्रौपदी मुर्मू संबंध रखती है. बावजूद उन्होंने ना तो अधिकारियों को बुलाकर रिपोर्ट मांगी. न सरकार से जवाब तलब किया. इसके बाद बकोरिया फर्जी एनकाउंटर को याद कीजिये. जहां निर्दोष आदिवासी बच्चो को नक्सली बताकर पुलिस ने मौत के घाट उतार दिया. उन बच्चो के परिजन आज भी इंसाफ की बात जोह रहे है. तब भी राज्यपाल द्रौपदी मुर्मू ही थी. मगर इस मामले में कार्रवाई की बात करे तो पूर्व की बीजेपी सरकार में मामले में फ़ाइल खुली ही नहीं. हेमंत सोरेन की सरकार बनने के बाद जब मामले में फ़ाइल खुली तो रूह कंपा देने वाली इस घटना की हर परत खुलने लगी. इस मामले में हेमंत सरकार के आने के बाद अब जाकर जांच शुरू हुई है. खूंटी में पुलिस ने गोली चलाई और निर्दोष आदिवासी युवक बिरसा मुंडा की मौत हो गयी. साइको गोलीकांड को भी कोई कैसे भूल सकता है. पत्थलगड़ी पर राजभवन का वही रुख दिखा जो भाजपा सरकार दिखाना चाहती थी. बेगुनाह आदिवासियों पर जबरन केस लादे जा रहे थे, तब भी राजभवन से कोई आहट नहीं हुई. सीएनटी एसपीटी एक्ट में संशोधन के खिलाफ जब पूरा राज्य तत्कालीन बीजेपी सरकार के खिलाफ सड़क पर था. तब भी छह माह लग गए राजभवन को फ़ाइल लौटाने में. ऐसे अनगिनत मामले हुए जिन्हे बताना शुरू किया जाये तो ये लेख छोटा पड़ जाएगा.
एतनाही नही आपको यह बताते चले कि वर्तमान परिस्थितियों की बात करे. तो देश में आदिवासी और दलितों के खिलाफ अत्याचार के मामलो में कमी आने के बजाय बेहताशा बढे है. देश में अब भी आदिवासी और दलित समाज अपने अधिकारों के लिए लगातार लड़ाई लड़ रहा है. ये बात अलग है कि अलग अलग पार्टियां अलग अलग नेताओ के नाम पर उन्हें कभी दलित उत्थान तो कभी आदिवासी कल्याण का सपना दिखाती रही है. मगर दलित राष्ट्रपति होने के बावजूद उनके मंदिर में जाने के बाद मंदिर की साफ़ सफाई करवाने से लेकर उनके मंदिरो में प्रवेश तक क्या क्या बातें सामने आयी ये आपको बताने की जरूरत नहीं है. दलित राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद के कार्यकाल में आदिवासियों पर अत्याचार के मामले 9.3% तक बढ़ गए. ये आंकड़े केवल 2019-2020 के है. वर्ष 2020 में देश में अनुसूचित जनजाति के लोगों के साथ अत्याचार के 8,272 मामले दर्ज किए गए, जो 2019 के मुकाबले 9.3 प्रतिशत का उछाल है. इन मामलों में सबसे आगे मध्य प्रदेश है जहां कुल मामलों में से 29 प्रतिशत मामले यानी 2,401 मामले दर्ज किए गए हैं. जबकि इसी मध्य प्रदेश में आदिवासियों की आबादी 21% है. जाहिर है जिन दो राज्यों में दलित और आदिवासियों के खिलाफ अत्याचार बढे उनमे सरकार भारतीय जनता पार्टी की रही. अब राष्ट्रपति भी एनडीए कोटे से ही है. जिन्हे आदिवासियों के लिए नायिका बताकर पेश किया जा रहा है. हम आशा करते है कि जिन दावों और वादों के साथ द्रौपदी मुर्मू देश की राष्ट्रपति बनी है. वे अपनी जिम्मेदारियों को पूरी निष्ठां से निभाएंगी और आदिवासी समाज के साथ साथ पूरे देश के लिए उपयोगी और अभूतपूर्व साबित होंगी.
अब आप एक नजर आंकड़ों पर भी ध्यान दे की क्या और कहा आदिवासी और दलितों की संख्या.
– दलितों और आदिवासियों के खिलाफ अत्याचार के मामलो में यूपी और मध्य प्रदेश सबसे ऊपर है
– 2018 – 2020 तक देशभर में दलितों के खिलाफ अत्याचार के 1,39,045 मामले दर्ज किए गए
– दलितों पर अत्याचार के अकेले यूपी में 2018 से 2020 तक 36,467 मामले सामने आये
– 2019 के मुक़ाबले 2020 में 9.3% तक बढ़ गए आदिवासियों के खिलाफ अत्याचार के मामले
– अनुसूचित जनजाति के लोगों के साथ अत्याचार के 8,272 मामले 2020 में सामने आये
– आदिवासियों की 21% आबादी वाले मध्य प्रदेश में 2019 से 2020 आते तक आदिवासियों पर शोषण और अत्याचार के 29% मामले बढ़ गए l
आप सोचिए कि आज भी हमारा देश कहा है , आप यह भी सोचे की जिस आदिवासी को लोग राष्ट्रपति बना रहे है और दूसरे तरफ वही आदिवासी समाज के लोग परेशान नजर आ रहे है तो आप क्या कहेंगे ।